फिल्मी गोठ : झन मारव गुलेल

ये बछर ह छत्तीसगढ़ राज बने के दसवां बछर आय। फेर ये दस बछर ह छत्तीसगढ़ी फिलिम के माध्यम ले छत्तीसगढ़िया मन के दस किसम के गति कर डारे हे। निश्चित रूप ले अइसन दृश्य ले बाहिर निकले के जरूरत हे। हम ये बात ल ठउका जानथन के बरसा के पानी ह तुरते उपयोग के लायक कभू नई राहय।
छत्तीसगढ़ी भाखा के पहिली फिलिम ‘कहि देबे संदेश’ ले चले फिलिम यात्रा ह आज कई कोस के सफर तय कर डारे हे, फेर जस-जस वोकर यात्रा के सफर बाढ़त हे, तस-तस वो ह अपन भाखा संस्कृति ले अलगियावत जावत हे, एकर खातिर आरूग व्यावसायिक मनखे-मनखे मन जतका दोषी हे, वतकेच अधकचरा लेखक-निर्देशक मन घलोक दोषी हें। ये बीच म संहराए के लाइक ए बात घलोक होवत हे, के मुम्बई म बइठे बड़का फिलिम निर्माता मन इहां के भाखा अउ गीत मन ला सुग्घर ढंग के सजा के राष्ट्रीय अउ अंतर्राष्ट्रीय मंच म परोसत हें। ए हर इहां बइठ के जतर-कतर बनइया मन के मुंह म ‘तमाचा’ बरोबर हे।
अभी हाल म जेन ‘पीपली लाइव’ बने हे, तेकर आरूग छत्तीसगढ़ी गीत- ‘चोला माटी के राम’ पारम्परिक शैली म हे जेमा मांदर के सुर मोहनी बरोबर लागथे। ‘छालीवुड’ के ‘छछान बैरी’ कस गीत ल सुन-सुन के मवाद भरे कान ल ये हर अड़बड़ नीक लागिस। ठउका इही किसम डेढ़ बछर पहिली ‘दिल्ली-6’ म ‘ससुराल गेंदा फूल’ घलोक आए रिहीसे। उहू ह आम जनमानस ल गजब सुहाए रिहीसे। ये बात अलग हे के कुछ ‘ठेकादार’ किसम के लेखक- कलाकार मन एकर रायल्टी अउ मूल स्वरूप के नांव म चिचियाइन-बोंबियाइन। फेर ये बात सब जानथें के ‘पारम्परिक’ गीत ह काकरो बपौती नइ होवय। वोला नवा रूप धड नवा शब्द दे के अच्छा बनाए जा सकथे। जेला ए.आर. रहमान अउ प्रसून जोशी ह ठउका पूरा करे रिहीसे।
”पीपली लाइव” अउ ”दिल्ली-6” के ये दूनो गीत ह पहिली आकाशवाणी ले ‘सुर सिंगार’ आवय तेकर सुरता देवा दिस। फेर अब न तो आकाशवाणी ह गुरतुर लागय न प्रसारण नवा रूप धरे ‘एलबम’ मन सुहावय। वोमन ल देख-सुन के लागथे के ये मन ल ‘सी ग्रेड’ मुंबइया फिलिम मन ले रूपांतरित कर दे गे होही। तभे समधीन के ‘झटका, टूरी नं. 1’ जइसे फिलिम अउ एलबम देखे-सुने ले मिलथे। फिलमी गीत के शुरूआत ह ‘झमकत नंदिया बहिनी लागय, परबत मोर मितान। गोंदा फूलगे मोर राजा। झन मारव गुलेल।’ जइसन मनभावन अऊ मन म गरब के भाव पैदा करने वाला गीत ले होए रिहीसे, वो ह अब ‘खटिया म आबे रात के’ जइसन गीत मन के श्रेणी म आगे हवय। ये हर हमर भाखा, साहित्य अउ संस्कृति के विकास धांय ते विनास, ये बात ल सबो जान अउ समझ सकथें। जबकि आज तकनीकी रूप ले फिलिम के निर्माण ह जादा आसान अउ अच्छा होगे हवय। लोगन चाहतीन त एकर अच्छा उपयोग कर सकत रिहीन हे, फेर लागथे के छालीवुड म सिरिफ ‘छीछालेदर’ किसम के मन भरे परे हें। जेन कुंआ के मेचका कस सिरिफ अपने तक सीमित हे उन न तो अच्छा लेखक-निर्देशक डहर देखयं न उनला जानय पहिचानय। साहित्यकार के नांव म कुछ गम्मतिहा किसम के लोगन उंकर मापदण्ड बनगे हवंय। जेकर मन के उद्देश्य इहां के भाखा संस्कृति के गौरव नहीं भलुक सिरिफ पइसा अउ प्रसिध्दि होथे ओकर मन ले कुछु उम्मीद कइसे करे जा सकथे।
ये बछर ह छत्तीसगढ़ राज बने के दसवां बछर आय। फेर ये दस बछर ह छत्तीसगढ़ी फिलिम के माध्यम ले छत्तीसगढ़िया मन के दस किसम के गति कर डारे हे। निश्चित रूप ले अइसन दृश्य ले बाहिर निकले के जरूरत हे। हम ये बात ल ठउका जानथन के बरसा के पानी ह तुरते उपयोग के लाइक कभू नई राहय। फेर जइसे-जइसे वो थिरावत जाथे, उड़ेरा पूरा के चिखला-माटी मन खाल्हे म बइठत जाथे, तइसे- तइसे पानी ह सुग्घर अउ उार दिखे लागथे। वोकर सेवाद ह गुरतुर लागे लगथे। ठउका अइसने छत्तीसगढ़ी फिलिम के दिन घलोक लहुटही इही आशा अउ भरोसा हे। ये क्षेत्र के सक्रिय लोगन ले बस अतके कहना हे, के अपन भाखा-संस्कृति ल तो कम से कम गुलेल गोली म झन टीपव।
सुशील भोले
41-191, डॉ. बघेल गली
संजय नगर, टिकरापारा रायपुर

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